आज का युग टेक्नोलॉजी का युग है इस युग में हमने अनेक टेक्नीकी आविष्कार देखे है लेकिन आज हम जिस चीज़ की बात करने वाले है वो सायद आपने आकाश में या अंतरिक्ष में उड़ते हुए जरूर देखी होगी तो आज हम जानेंगे रॉकेट क्या है और रॉकेट कैसे काम करता है |
ऐसे तो रॉकेट का आविष्कार सदियों पहले ही हो चुका था क्युकी चीन में 12 सदी से ही राकेट का उपयोग होता चला आ रहा है चीन में इन राकेट को आतिशबाज़ी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन आधुनिक रॉकेट का आविष्कार 19 वी सदी में हो पाया था जब द्वितीय विश्वयुद के समय रॉकेट का उपयोग खूब किया गया था
चलिए अब हम रॉकेट क्या है और रॉकेट कैसे काम करता है यह विस्तार से नीचे जानते है –
रॉकेट शब्द ईटालियन शब्द ‘rocchetta’ से पैदा हुआ है; जिसका अर्थ होता है ऐसी सिलेंडर नुमा चीज़ जिस पर बहुत सारे धागे लपेटे जाते हैं।
रॉकेट एक सिलेंडर के आकार का ऐसा यान है; जो बहुत ही तेज रफ़्तार से अपनी विपरीत दिशा में जलते हुए मिश्रित गैसों के अपशिष्ट छोड़ता है, जिससे उसमें संवेग पैदा होता है और वह बहुत ही तेज गति से आगे की और गति करता है |
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रॉकेट इंजन समान्यतः दो प्रकार के होते हैं।
रॉकेट कैसे काम करता है – राकेट इंजन तरल ईंधन का उपयोग करते हैं और कुछ राकेट ईंधन में ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है | इसमें स्पेस शटल ऑर्बिटर के इंजन तरल ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। स्पेस शटल के किनारे में दो सफेद ठोस रॉकेट बूस्टर्स का काम करते हैं।
आतिशबाजी में उपयोग होने वाले पटाखे या रॉकेट और मॉडल रॉकेटों में ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है। लेकिन, ठोस ईंधन से ज्यादा लाभकारी एवं पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण अब ज्यादातर तरल ईंधन का ही इस्तेमाल किया जा रहा है।
तरल ईंधन के लिए रॉकेट में तरल हाइड्रोजन (LH2) का होता है ; जिसको हाइड्रोजन गैस को -253 डिग्री सेल्सियस पर ठंडा करके निर्मित किया जाता है वही ऑक्सीडाइजर के लिए तरल ऑक्सीजन (LOX) का उपयोग होता है ; इस ऑक्सीजन गैस को -183 डिग्री सेल्सियस पर ठंडा करके बनाया जाता है। राॅकेट लाॅन्च के कुछ देर पहले ही इन दानों को रॉकेट इंजन के दो अलग-अलग टेंको में डाला जाता है।
राॅकेट गति के तिसरे नियम – प्रत्येक क्रिया की दिशा में विपरीत एवं बराबर प्रतिक्रिया (FA = −FB), के सिद्धांत पर काम करता है।
अगर देखा जाये तो रॉकेट इंजन भी अन्य इंजनों की तरह ही कार्य करता है। वह अपने ईंधन को जलाकर उससे थर्स्ट पैदा करता है। थर्स्ट का सामान्य शब्दों में अर्थ धक्का होता है। वह राकेट को आगे बढ़ने के लिए धक्का देता है।
ज्यादातर रॉकेट इंजन ईंधन को गर्म गैस में परिवर्तित कर देता हैं। इंजन इस गैस को पीछे की ओर छोड़ता है जिससे यह रॉकेट आगे की ओर गति करता जाता है।
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रॉकेट कैसे काम करता है यह तो हमने जान लिया अब हम जानेगे रॉकेट का आविष्कार कब हुआ? रॉकेट का आविष्कार 12वीं सदी के आसपास चीन में हुआ था । इन ठोस रॉकेटों को आतिशबाजी के लिए उपयोग किया जाता था। युद्ध में सेनाओं द्वारा भी इसका उपयोग होता था। इन रॉकेटों का 13वीं सदी में एशिया और यूरोप के ज्यादातर हिस्से में आतिशबाजी और युद्धों में उपयोग होने लगा था।
लेकिन आधुनिक रॉकेट का विकास 19वीं सदी के बाद 600 साल के बड़े अंतराल के बाद ही हो सका। दूसरे विश्व-युद्ध के समय शक्तिशाली रॉकेट का उपयोग बड़ी मात्रा में हुआ। इस काल में राॅकेटों के ऊपर बम रखकर इनका उपयोग दुश्मन को मार गिराने में किया जाता था |
दूसरे विश्व युद्ध के आंकड़े बताते हैं कि सात महीने के दौरान इंग्लैंड पर 1115 राॅकेट गिराए गए थे । ‘वी-2’ राॅकेटों ने लंदन शहर में बड़ी तबाही मचाई थी
वर्तमान में इसका का इस्तेमाल मानव-निर्मित उपग्रहों को धरती की कक्षा में स्थापित करने, मनुष्य को अंतरिक्ष में ले जाने तथा अन्य अंतरिक्ष सम्बंदित कार्य में किया जा रहा हैं। मनुष्य राॅकेट की मदद से ही चंद्रमा पर पहुँच सका है और आने वाले समय में इसके द्वारा मंगल पर भी जाने की तैयारी में है।
रॉकेट जब आकाश में छोड़ा जाता है तो उसके नीचे से आग की एक लपट निकलती है और फिर वह ऊपर की और गति करता है। क्युकी रॉकेट में ईंधन जलता है, जिससे उसमे से गर्म गैस निकलती है। स्पेस शटल में तरल हाइड्रोजन और ठोस प्रोपालेंट का इस्तेमाल किया जाता है। ठोस प्रोपालेंट जलता है, लेकिन उसमे विस्फोटक नहीं होता।
रॉकेट को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर भेजना इतना सरल नहीं होता है। इसमें एक बंद चैंबर में विस्फोट एक रासायनिक प्रक्रिया से होता है, जिससे रॉकेट के पीछे के हिस्से से गर्म गैसें निकलती हैं। इसी एनर्जी से रॉकेट का इंजन 16,000 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से धरती से ऊपर उड़ पाता है।
रॉकेट का इंजन रॉकेट लॉन्च के 2 मिनट बाद ही शटल से अलग हो जाता है। और रॉकेट का बाहरी टैंक भी कुछ समय बाद खाली हो जाता है, पर तब तक रॉकेट अंतरिक्ष से काफी दूर चला जाता है।
ऐरोप्लेन सिर्फ धरती के वायुमंडल में ही उड़ सकता है, क्योंकि एरोप्लेन के इंधन को जलाने के लिए हवा में मौजूद ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। वही रॉकेट धरती के वायुमंडल के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी उड़ सकता है; क्योंकि रॉकेट का इंजन ईंधन को जलाने के लिए ऑक्सीडाइजर को अपने साथ लेकर उड़ता है।
राकेट के इंजन को बाहर से ऑक्सीजन लेने कि जरूरत होती, इसी वजह से यह कही भी और कितनी भी ऊंचाई में उड़ सकता है।
निर्वात (वैक्यूम}: ऐसी जगह जहाँ कोई पदार्थ नहीं होता या ऐसी स्थिति जहा दबाव इतना कम रहता है कि वहाँ मौजूद कोई भी कण वहाँ पर किसी भी प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करता है ,यह सामान्य वायुमंडलीय दाब से नीचे की स्थिती कहलाती है; जिसको दाब की इकाई ‘पास्कल’ द्वारा मापा जाता है।
ऑक्सीडाइजर (Oxidizer) : ऑक्सीडाइजर वे पदार्थ होते है जो किसी दूसरे पदार्थ को ऑक्सीडाइज कर सकते है यह पदार्थ दूसरे पदार्थ को ऑक्सीजन प्रदान कर जलाने में सहायता करते है।
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आज इस से जुड़े पोस्ट में हमने जाना रॉकेट क्या है और रॉकेट कैसे काम करता है | उम्मीद है आपको हमारी यह पोस्ट पसद आयी होगी आपको हमारी पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताये अगर कोई कमी हो तो भी जरूर बताये
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